सरस्वती पूजा पर लेख
माँ सरस्वती हंस पर बैठती है। यह हंस ज्ञान का सत्यासत्य - निर्णय का प्रतिक है। उजला कमल इनका आसान है जो सादगी और स्वच्छता का प्रतिक है। सरस्वती माँ भी उजले रंग के वस्त्र से सुसज्जित होती है। उजले रंग की यह मान्यता भी है शिक्षा ग्रहण करना चाहते है उन्हें रंगीन कपड़े नहीं धारण करने चाहिए।
माता सरस्वती ने एक हाथ पे विणा का धारण किया है जो यह सन्देश देती है की शिक्षा के भांति संगीत भी मानव जीवन का एक अभिन्न अंग है। संगीत मानव जीवन को मधुर और सरस बनता है। सरस्वती माँ के दूसरे हाथ में पुस्तक है जो ज्ञान और शिक्षा का प्रतिक है। इस पूजा को करने का मुख्य उद्देश्य यह है की उस दिन सभी विद्यार्थी मन, कर्म और वचन के साथ अच्छे विचार और ज्ञान पाने की प्रार्थना करते है।
सरस्वती पूजा विद्यार्थियों के लिए सबसे बड़ा पर्व है। इसके लिए वे पूजा के कुछ दिन पहले से ही तैयारी शुरू कर देते है। पुरे उत्साह के साथ अपने मोहल्ले के आस - पड़ोस से चंदा एकत्रित करता है। पूजा के अवसर पर नृत्य, संगीत और नाटक आदि का तैयारी भी करते है। पूजा के लिए माँ सरस्वती की सुन्दर प्रतिमा बनायी जाती है। प्रतिमा को सुसज्जित कर विशेष अलंकृत स्थान पर रख कर पूजा अर्चना की जाती है। पूजा में सभी लोग रंग-बिरंगें पोशाक धारण करते है। इस दिन गॉँव और शहर में एक विशेष उमंग देखने को मिलता है।
पूजा के दूसरे या तीसरे दिन प्रतिमा विषर्जन का कार्यक्रम पुरे धूम-धाम से की जाती है। विषर्जन में अबीर खेलने के साथ नाच-गान होती है। माँ सरस्वती से अगले वर्ष आने की प्रार्थना करने के पश्चात् नदी या तालाब में इसकी प्रतिमा वषर्जित की जाती है।
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